जहाँ पर भगवान पार्श्वनाथ ने अखण्ड तप किया। दस भाव के वैरी कमठ ने प्रचंड आँधी, ओले, शोले वर्षाकर घोर उपसर्ग किया। इसी अतिशय स्थल पर धरणेन्द्र पद्यावती ने फण मंडप रचकर उपसर्ग निवारण किया। इसी पुनीत भूमि पर पार्श्वनाथ ने केवल ज्ञान पाकर अरहंत पद प्राप्त किया। इसी पुण्य भूमि की प्राचीन काल से तिखाल वाले बाबा के नाम से पूजा भक्ति की जाती है। इसी तीर्थ पर लाखों भक्तों ने पुण्य लाभ लेकर अपनी मनोकामना पूरी की है। यहीं पर अनेक पापियों ने पश्चाताप करके अपने को सुमार्ग पर लगाया है। यह वेदी उन्हीं प्राचीन पवित्र दीवारों पर प्रतिष्ठित है जिसके विषय में किवदती है कि यह देवों द्वारा निर्मित है।
जीर्णोद्धार के समय जो प्राचीन अवशेष प्राप्त हुये हैं उन्हे देखने वाले विद्वानों का स्पष्ट दृढ मत है कि यहीं भगवान पार्श्वनाथ की तप व केवल ज्ञान भूमि है। इसी तीर्थ पर भगवान पार्श्वनाथ का प्रथम समवशरण लगा है।
श्री अहिच्छत्र की मुख्य वेदी तिखाल वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध है। जिसके सम्बन्ध में जन श्रुत्ति है कि प्राचीन समय में जब जैन मन्दिर का जीर्णोद्धार हो रहा था उन्हीं दिनों एक रात को मन्दिर..
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यहाँ प्रांगण में ही भगवान पार्श्वनाथ का तीस चौबीसी मन्दिर भी है इसमें 11 शिखर हैं। मुख्य मूर्ति भगवान पार्श्वनाथ की काले पाषाण की 13.5 फिट ऊंची 108 फण युक्त है। इस मन्दिर में दस कमल हैं।
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जैसा कि विदित ही है कि उसी स्थान पर कमत ने मुनि अवस्था में ध्यानस्थ पार्श्वनाथ के ऊपर उपसर्ग किया तो देवों का आसन कम्पायमान हुआ। और अपने परोपकारी पर वह उपसर्ग..
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यह वहीं प्राचीन अतिशय कुआँ है, जिसमें स्वतंत्रता गदर के समय सन् 1857 ई० में यवनों ने मन्दिर पर आक्रमण किया, तो मन्दिर का माली मन्दिर की मूर्ति को लेकर चौबीस घण्टे तक इस कुएं में छिपा रहा।
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आज से लगभग 1400 वर्ष पुरानी बात है। विक्रम की छठी शती में एक पात्रकेसरी नाम के धुरंधर वैदिक विद्वान थे। वे न्याय, व्याकरण, वेद, उपनिषद, आदि अनेक विषयों के प्रकाण्ड पंडित थे। ।
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भगवान पार्श्वनाथ की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं धर्णेन्द्र पद्मावती की प्राण-प्रतिष्ठा दिसम्बर सन् 2007 (मंगशिर शु. एकम से पंचमी) सम्पन्न हुई है।
उ० प्र० सरकार द्वारा निर्मित 2 करोड रूपये की लागत से एक थीम पार्क बनाया गया है जो क्षेत्र से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कमेटी के प्रयासों से इस थीम पार्क को उ०प्र० सरकार ने..
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