पार्श्वनाथ भगवान (तिखाल वाले बाबा) का बड़ा मन्दिर

श्रीअहिच्छत्र की मुख्य वेदी तिखाल वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध है। जिसके सम्बन्ध में जन श्रुति है कि प्राचीन समय में जब जैन मन्दिर का जीर्णोद्धार हो रहा था उन्हीं दिनों एक रात को मन्दिर के माली एवं पुजारी ने मन्दिर के अन्दर खट-खट की आवाज सुनी जब मन्दिर जी का ताला खोल कर देखा तो एक दीवार बनी हुई थी और उसमें एक (तिखाल) आला भी बना हुआ था एवं उसमें यह हरित पन्नामई में पद्मासन प्रतिमा विराजमान थी। यह अवश्य ही किसी देवनयी अदृश्य हाथों द्वारा रचना हुई थी। तभी से इसकी ख्याति तिखाल वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध है। सन् 1975 ई० में जब मन्दिर का जीर्णोद्धार हुआ तब इस वेदी को ऊंचा करने हेतु नीचे खुदाई की गई तो वहां मि‌ट्टी से बनी हुई एक डड्डेदार शय्या दिखाई दी एवं एक आला जिसमें एक दीपक व एक सिक्का रखा था जिसको दर्शनार्थियों के लिये एक मास तक रखा गया एवं कुछ विद्वानों के आदेशानुसार उसे उसी प्रकार बन्द कर दिया गया। श्रद्धालुओं का यही दृढ़ विश्वास है कि अतिशय युका तिखाल वाले बाबा की भक्ति एवं पूजा करने से इस चमत्कार द्वारा समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती हैं तथा समस्त संकट कट जाते हैं। इसके अतिरिक्त यात्रियों को रात्रि में मन्दिर जी में घण्टे की आवाज सुनाई देती हैं जब कि मन्दिर बन्द होता है जो इस बात का प्रतीक है कि देवगण भगवान के दर्शनार्थ आजकल भी यहां आते हैं। एक बार जो यात्री यहां आकर भक्ति एवं दर्शन करता है उसका बार-बार आने का मन करता है। इस मूर्ति के आगे चरण पादुकायें है जिस पर निम्नलिखित लेख अंकित हैं।