यही वह पवित्र प्राचीन भूमि है
जहाँ पर भगवान पार्श्वनाथ ने अखण्ड तप किया। दस भाव के वैरी कमठ ने प्रचंड आँधी, ओले, शोले वर्षाकर घोर उपसर्ग किया। इसी अतिशय स्थल पर धरणेन्द्र पद्यावती ने फण मंडप रचकर उपसर्ग निवारण किया। इसी पुनीत भूमि पर पार्श्वनाथ ने केवल ज्ञान पाकर अरहंत पद प्राप्त किया। इसी पुण्य भूमि की प्राचीन काल से तिखाल वाले बाबा के नाम से पूजा भक्ति की जाती है। इसी तीर्थ पर लाखों भक्तों ने पुण्य लाभ लेकर अपनी मनोकामना पूरी की है। यहीं पर अनेक पापियों ने पश्चाताप करके अपने को सुमार्ग पर लगाया है। यह वेदी उन्हीं प्राचीन पवित्र दीवारों पर प्रतिष्ठित है जिसके विषय में किवदती है कि यह देवों द्वारा निर्मित है। जीर्णोद्धार के समय जो प्राचीन अवशेष प्राप्त हुये हैं उन्हे देखने वाले विद्वानों का स्पष्ट दृढ मत है कि यहीं भगवान पार्श्वनाथ की तप व केवल ज्ञान भूमि है। इसी तीर्थ पर भगवान पार्श्वनाथ का प्रथम समवशरण लगा है।