अतिशयकारी प्राचीन कुआँ

इस कलापूर्ण वेदी में मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ की सप्त फणालंकृत श्यामवर्ण की प्रतिमा है। यह प्रतिमा देखने में संगमरमर की प्रतीत होती है। इस मूर्ति के नीचे तीर्थकर की छोटी-छोटी चौबीस प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं। प्रतिमा के वक्ष स्थल पर श्री वत्स का चिन्ह है, कान कथों को स्पर्श कर रहे हैं। ऊपर की फणावली सीधी है। दाई और भगवान पार्श्वनाथ की संगमरमर की खड्‌गासन प्रतिमा है। बाई ओर भगवान पार्श्वनाथ की एक पद्‌मासन प्रतिमा है। शीर्ष पर पंच मुखी फण है। इस चौबीसी वेदी में अनेक अन्य तीर्थकरों की प्रतिमायें है, तथा एक सिद्ध भगवान की प्रतिमा भी विराजमान है। इसी बेचेदी में भूगर्भ से प्राप्त दो अत्यन्त प्राचीन मनोज्ञ व कलात्मक प्रतिमायें विराजमान हैं जिसमें एक प्रतिमा पंच बालयति की अष्ट धातु की है तथा दूसरी प्रतिमा भूरे रंग की पाषाण की शान्तिनाथ, कुंन्धनाथ एवं अरहनाथ की संयुक्त प्रतिमा है। यह दोनों मूर्तिया अल्मोडा के पास द्रोणागिरी पर्वत के जंगल से प्राप्त हुई थी (जो बरेली निवासी श्रीमति त्रिशला देवी जैन पुत्री स्व० श्री मूलचन्द जैन, पानीपत निवासी) से प्राप्त हुई जिन्हें बरेली से लाकर 18 जुलाई 1999 को मंत्रों द्वारा शुद्धि करके एक विशेष समारोह के साथ विराजमान किया गया।